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1 Aug 2020 · 1 min read

क्या इसको जीना कहते हैं।

कल रात में
जब मैंने खोली थी
सबसे छिपाकर, वो डायरी
और उसमें सुखी हुई गुलाब की वो पत्ती
हर रोज इसको दुहराना
क्या इसको जीना कहते हैं।
कितना आसान होता है ना
अपनी ख्वाहिशों से मुंह मोड़ लेना
समझा लेना खुद को
कि जी लेंगे हम
लेकिन क्या इसको जीना कहते है।
रोज दिन के उजाले में
भींगी आंखों पर मुस्कान लाना
और रात में अकेले सबसे छिपा कर
खूब रोना।
ये कोई कहानी नहीं है
जो सुनकर भूल जाना है कुछ देर में
यही बात खुद को समझाना
क्या इसको जीना कहते है।
वो किसी और का हो गया है
सुना था मैंने, अपनी पड़ोसन से
और यह सुनकर भी मुस्कुराना,
कितनी तड़प है इस बात में
यह बस मै जानती हूं
लेकिन सब कुछ जानने के बाद भी
उसे रोज अपनी यादों में लाना
क्या इसको जीना कहते हैं।

Language: Hindi
8 Likes · 3 Comments · 285 Views
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