कुंडलिनी छंद
ठाढ़ी आँगन रूपसी,ज्यों खोले घन केश।
ऐसा मादक लग रहा, घटा सँग परिवेश।
घटा सँग परिवेश,देख रति इच्छा बाढ़ी।
धरकर सुंदर रूप,प्रकृति बाला-सी ठाढ़ी।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
ठाढ़ी आँगन रूपसी,ज्यों खोले घन केश।
ऐसा मादक लग रहा, घटा सँग परिवेश।
घटा सँग परिवेश,देख रति इच्छा बाढ़ी।
धरकर सुंदर रूप,प्रकृति बाला-सी ठाढ़ी।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय