Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Jan 2019 · 3 min read

किसान

“हरिया! आजकल खेत में नहीं दिखते हो? कोई दूसरा काम मिल गया क्या?” रास्ते से जाते हुए बिचौलिये ,नत्थू सिंह ने पूछा । “मालिक क्या बताऊँ? लुगाई की तबीयत बहुत खराब है, 10 दिन से अस्पताल की भागदौड़ में ही लगा हुआ हूँ ”
” क्या हो गया रे तेरी जोरू को ?” नत्थू सिंह ने अधीरता से पूछा । “इ डाक्टर लोग बोलत हैं नुमोनिया हो गया है” हरिया ने जवाब दिया । “उसको निमोनिया कहते हैं “। “हाँ ! उही हुआ है”।
“देखो न मालिक 35000 जमा करने बोल रहा है, नै तो इलाज नै करेगा …कहाँ से लायेंगे हम एतना पैसा ?”
“मालिक थोड़ा मदद कर दो न ….हम कुछ भी कर के चुका देंगे ”
“पैसा पेड़ पर नहीं उगता है हरिया!” “मेहनत करना पड़ता है” कहते हुए फोन कान पर लगाकर नत्थू सिंह आगे बढ़ गया।
हरिया बहुत गरीब किसान था । उसके पास कुछ नहीं था सिवाय एक कुटिया और पत्नी के । एक छोटा सा खेत वह अपनी माँ के इलाज के लिए 5 वर्ष पहले ही बेच चुका था पर माँ फिर भी नहीं बची । दूसरों के खेत में मजदूरी करके गुजारा करने वाले हरिया के पास खोने के लिखने अपनी पत्नी के सिवाय कुछ नहीं था।
हरिया सप्पन सिंह के घर पहुँचा , जो बहुत बड़ा जमींदार था।”साहब कुछ पैसे दे दो साब ; लुगाई का इलाज करवाना है साब नहीं तो मर जायेगी, मैं कैसे भी आपके पैसे लौटा दूँगा साब!” हरिया गिड़गिड़ाने लगा । “ऐ मलिकिनी सुनती हो ! हरिया पैसे माँग रहा है और कह रहा है कि बाद में लौटा देगा…” और कहते कहते जोर से अट्टहास करने लगा। हरिया को यहाँ से भी खाली हाथ लौटना पड़ा ।
इसी तरह हरिया पैसों के लिए भटकता रहा । अधिकतर जगह उसे मिली तो लेकिन उलाहना मिली । हरिया के गिड़गिड़ाने से कुछ लोगों को दिल पसीजा तो कुछ पैसे दे दिये नहीं तो नत्थू सिंह और सप्पन सिंह जैसे लोग ही मिले। पर हरिया अपने एक मात्र सहारे के लिए कुछ भी करने को तैयार था।
जैसे तैसे कुछ पैसे इकट्ठा कर के हरिया हाँफता हुआ अस्पताल पहुँचा ।
“डाक्टर साब हम ले आए ”
“सॉरी हरिया तुम लेट हो गये तुम्हारी पत्नी अब नहीं रही” डाक्टर ने सर झुकाते हुए कहा और वहाँ से चला गया।
हरिया अपनी पत्नी की लाश के पास पहुँचा ।वह दहाड़ मार कर रोना चाह रहा था पर आँसू ही नहीं आ रहे थे।

जो पैसे हरिया ने इकट्ठा किये थे उससे ही अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार किया । अब वह बिल्कुल नि:सहाय था । कुछ सोचते हुए वह गाँव के ही नदी पर बने पुल पर पहुँचा और वहाँ बैठ गया। नदी के किनारों को देखकर उसे बचपन के दिन याद आ गये जब वह तैरकर इस किनारे से उस किनारे तक पहुँच जाता था और अचानक से उसने छलांग लगा दी। वह नदी की गहराइयों में जाता जा रहा था। वह तैर कर उपर आ सकता था पर वह चाहता नहीं था। वातावरण बिल्कुल शांत था सिर्फ कुछ देर तक डुबकियों की आवाज आई। कुटिलता से मुस्कुराते हुए काले बादल ढलते हुए सूरज और उसकी लालिमा को ढकने लगे थे। एक और किसान मजबूरियों के आगे दम तोड़ चुका था …………

©आयुष कश्यप
फारबिसगंज

Language: Hindi
1 Like · 756 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
#दोहा-
#दोहा-
*Author प्रणय प्रभात*
थोपा गया कर्तव्य  बोझ जैसा होता है । उसमें समर्पण और सेवा-भा
थोपा गया कर्तव्य बोझ जैसा होता है । उसमें समर्पण और सेवा-भा
Seema Verma
सर्जिकल स्ट्राइक
सर्जिकल स्ट्राइक
लक्ष्मी सिंह
2702.*पूर्णिका*
2702.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
अमृत वचन
अमृत वचन
Dinesh Kumar Gangwar
धनमद
धनमद
Sanjay ' शून्य'
आप अपने मन को नियंत्रित करना सीख जाइए,
आप अपने मन को नियंत्रित करना सीख जाइए,
Mukul Koushik
आब-ओ-हवा
आब-ओ-हवा
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
प्रकृति प्रेमी
प्रकृति प्रेमी
Ankita Patel
* किधर वो गया है *
* किधर वो गया है *
surenderpal vaidya
ज्ञान -दीपक
ज्ञान -दीपक
Pt. Brajesh Kumar Nayak
"वादा" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
देशभक्ति जनसेवा
देशभक्ति जनसेवा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*मौसम बदल गया*
*मौसम बदल गया*
Shashi kala vyas
टूटते उम्मीदों कि उम्मीद
टूटते उम्मीदों कि उम्मीद
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
যখন হৃদয় জ্বলে, তখন প্রদীপ জ্বালানোর আর প্রয়োজন নেই, হৃদয়ে
যখন হৃদয় জ্বলে, তখন প্রদীপ জ্বালানোর আর প্রয়োজন নেই, হৃদয়ে
Sakhawat Jisan
जिंदगी और जीवन तो कोरा कागज़ होता हैं।
जिंदगी और जीवन तो कोरा कागज़ होता हैं।
Neeraj Agarwal
दो शब्द यदि हम लोगों को लिख नहीं सकते
दो शब्द यदि हम लोगों को लिख नहीं सकते
DrLakshman Jha Parimal
हारो मत हिम्मत रखो , जीतोगे संग्राम (कुंडलिया)
हारो मत हिम्मत रखो , जीतोगे संग्राम (कुंडलिया)
Ravi Prakash
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
आस्था होने लगी अंधी है
आस्था होने लगी अंधी है
पूर्वार्थ
धनतेरस जुआ कदापि न खेलें
धनतेरस जुआ कदापि न खेलें
कवि रमेशराज
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Neelam Sharma
श्रम कम होने न देना _
श्रम कम होने न देना _
Rajesh vyas
आदिकवि सरहपा।
आदिकवि सरहपा।
Acharya Rama Nand Mandal
एक गजल
एक गजल
umesh mehra
एक उलझन में हूं मैं
एक उलझन में हूं मैं
हिमांशु Kulshrestha
ऐसा बेजान था रिश्ता कि साँस लेता रहा
ऐसा बेजान था रिश्ता कि साँस लेता रहा
Shweta Soni
ज़िंदगी के सारे पृष्ठ
ज़िंदगी के सारे पृष्ठ
Ranjana Verma
Loading...