Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 May 2017 · 3 min read

किसान

पहले थोड़ा चटाया..
अरे वाह..मज़ा आया..
और चाहिए..
हाँ.. थोड़ा ज्यादा चाहिए..
ये लो..
और चाहिए..
हाँ.. और ज्यादा चाहिए..
ये लो..
और चाहिए..
हाँ.. बहुत ज्यादा चाहिए..
चलो पैसे निकालो अब..

वो पैसे ले आएगा..
कहीं से भी ले आएगा पर ले आएगा..
भीख भी मांगेगा..

किसी को नशेड़ी ऐसे ही बनाया जाता है..
वही रिश्ता है सरकार और किसान का..

आप भूख से बिलबिला कर मर जाएं और हम आपकी खोपड़ी को निकालकर सड़क पर दिखाएं..जैसे वो भिखारी किसी को झूठ का ही लिटा कर कफन के लिए पैसे मांगते हैं..

उनको तो फिर भी मिल जाता है..पर यहां तो बुरा हाल है..क्या क्या नहीं किया उन्होंने..आधा सिर और आधी मूँछ मुड़वा कर भी देख लिया..पर सिर्फ हँसी के ही पात्र बनकर रह गए..

एक कहावत है..जात भी गंवाई और स्वाद भी ना पाया..
वही हाल हो रहा है..

मुफ्त में तो किसी ने उनकी हजामत बनाई नहीं होगी..पैसा तो लिया ही होगा..
वो भी डूब गया..

मुँह में चूहे और साँप दबाकर भी अपनी भूख दिखाने की कोशिश की..उनके चक्कर में बेचारे चूहे साँप खामखा मारे गए..उनके ऊपर तो कोई कर्ज़ भी नहीं था..

हर तरीका आज़मा लिया..यूरीन तक पी कर दिखाया दिया..और बात क्या..बस कर्जमाफी के लिए..और सूखा राहत पाने के लिए..

कह रहे हैं भूखे मर रहे हैं..पर ऐसा लगता है कि जैसा दिख रहा है वैसा है नहीं..
इनको कोई इस्तेमाल कर रहा है..वरना दिल्ली पहुँच गए तो पार्लियामेंट कितनी दूर है..

घुस जाते..लूट लेते..भूख तो आदमी से क्या ना करा दे..
और वो भी जब भीड़ के रूप में हो..
और ये तो उनका हक ही होता..
कर देते क्रांति..

भीड़ तो है..पर एकता नहीं है..
ना ही कोई विजन है..
और ना ही कोई विकास संबंधी प्रस्ताव है..
बस राहत पैकेज चाहिए..

वो ऊँची कुर्सियों पर बैठे लोग एक झटके में बोल देते हैं कि किसानों का कर्ज माफ करना उचित नहीं है..
जो खुद लूट कर खा रहे हैं उन्हें अर्थव्यवस्था की चिंता होने लगती है..

वैसे सही बात है..किसानों का कर्ज माफ करना बिल्कुल उचित नहीं है..लिमिटेड पैसा है देश के पास..
उसी में सब कुछ चलाना है..अगर किसानों के हिस्से ही चला गया तो उनकी जेबें कहाँ से भरेंगी..
भरना तो दूर..चवन्नी भी नहीं बचेगी..

सफेद कुर्ते और नीले कॉलर वालों का तो घर ही इसी से चल रहा है..और कुछ शर्ट बाहर निकाल कर फाइलों में मुँह मारने वाले भी हैं..शायद बाबू कहते हैं उन्हें..
रसगुल्ला तो नहीं, पर चासनी तो मिल ही जाती है..
काम नहीं करते वो..मन तो उनका दिन भर मधुमक्खियों की तरह मीठे की तलाश में रहता है बस..

समझौता होगा..कुछ किसान नेता को मिलेगा..कुछ किसानों को मिलेगा..और बाकी सारा जाएगा उस बड़ी सी जेब में जो कभी नहीं भरती..
और इंतजार रहेगा अगले सूखे का..या बाढ़ का..
फायदा तो हर तरफ से है..

आज सैकड़ों और हजारों में मर रहे हैं..कल लाखों में मरेंगे..जितने मरेंगे उतना फायदा..एकदम वही हाथी वाली बात..जिंदा हाथी एक लाख का..मरा हाथी सवा लाख का..

सरकार खेती के लिए कॉर्पोरेट घरानों को फ़ंड, सब्सिडी, जमीन..सब कुछ दे सकती है..पर किसान को डिवेलप नहीं कर सकती..

देश को बस अनाज चाहिए..और वो भी सस्ते से सस्ते रेट पर..चाहे वो कोई अपने खून से ही क्यों ना सींच रहा हो..

हालत और हालात..दोनों ही बदतर होते जा रहे हैं..
बड़े किसान के पास तो फिर भी कुछ ऑप्शन हैं..उसको तो राहत पैकेज भी ज्यादा मिलता है..

दिक्कत तो छोटे किसान की है..

फेंफड़े स्पष्ट दिखते हैं उसके..एक्स रे की भी जरूरत ना पड़े इतने स्पष्ट..
पैर इतने फट चुके हैं कि दुनिया की कोई क्रीम उसको सही नहीं कर सकती..
आँतड़ियों में भी दम नहीं रहा कुछ..और पेट भी अंदर तक सिकुड़ गया है..
खुदगर्जी इतनी भरी है कि भीख भी नहीं मांग सकता है..
आत्म हत्या करना ज्यादा आसान लगता है उसे..

ये किसान भाई लोग उसी की खोपड़ी निकाल कर लाये हैं..

खैर..इतना बड़ा देश है..मरना जीना तो लगा रहता है..
पर भारत कृषि प्रधान देश था..है..और हमेशा बना रहेगा..

बस किताबों में ही..और निबंधों में..

वो समय अलग था..लाल बहादुर शास्त्री बार बार पैदा नहीं होते..

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Comment · 526 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ईश्वर है
ईश्वर है
साहिल
"Do You Know"
शेखर सिंह
"सत्ता से संगठम में जाना"
*Author प्रणय प्रभात*
पहले सा मौसम ना रहा
पहले सा मौसम ना रहा
Sushil chauhan
रहती है किसकी सदा, मरती मानव-देह (कुंडलिया)
रहती है किसकी सदा, मरती मानव-देह (कुंडलिया)
Ravi Prakash
लड़की
लड़की
Dr. Pradeep Kumar Sharma
दोस्त.............एक विश्वास
दोस्त.............एक विश्वास
Neeraj Agarwal
रूप पर अनुरक्त होकर आयु की अभिव्यंजिका है
रूप पर अनुरक्त होकर आयु की अभिव्यंजिका है
महेश चन्द्र त्रिपाठी
दुर्जन ही होंगे जो देंगे दुर्जन का साथ ,
दुर्जन ही होंगे जो देंगे दुर्जन का साथ ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
यदि आप अपनी असफलता से संतुष्ट हैं
यदि आप अपनी असफलता से संतुष्ट हैं
Paras Nath Jha
*** मां की यादें ***
*** मां की यादें ***
Chunnu Lal Gupta
ये जो लोग दावे करते हैं न
ये जो लोग दावे करते हैं न
ruby kumari
मैं बेटी हूँ
मैं बेटी हूँ
लक्ष्मी सिंह
कहाँ अब पहले जैसी सादगी है
कहाँ अब पहले जैसी सादगी है
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
भारत
भारत
Bodhisatva kastooriya
गुरु कृपा
गुरु कृपा
Satish Srijan
भारत माता की वंदना
भारत माता की वंदना
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
💐प्रेम कौतुक-351💐
💐प्रेम कौतुक-351💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
अब कुछ बचा नहीं बिकने को बाजार में
अब कुछ बचा नहीं बिकने को बाजार में
Ashish shukla
"शाख का पत्ता"
Dr. Kishan tandon kranti
प्यार के बारे में क्या?
प्यार के बारे में क्या?
Otteri Selvakumar
लौट कर फिर से
लौट कर फिर से
Dr fauzia Naseem shad
कौन हो तुम
कौन हो तुम
DR ARUN KUMAR SHASTRI
पहले पता है चले की अपना कोन है....
पहले पता है चले की अपना कोन है....
कवि दीपक बवेजा
जमाना गुजर गया उनसे दूर होकर,
जमाना गुजर गया उनसे दूर होकर,
संजय कुमार संजू
कविता: माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
कविता: माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
Rajesh Kumar Arjun
సంస్థ అంటే సేవ
సంస్థ అంటే సేవ
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
जीवन
जीवन
Monika Verma
कोरोना का रोना! / MUSAFIR BAITHA
कोरोना का रोना! / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
2529.पूर्णिका
2529.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
Loading...