Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Dec 2016 · 3 min read

किन्नर ……माँ के नाम एक पाती , जो लिखी है रह जाती

माँ के नाम एक पाती , जो लिखी है रह जाती
किन्नर ……
कहते हैं मनुष्य गलतियों का पुतला है.यह सार्वविदित व स्वीकार्य भी है ,किंतु ईश्वर ! क्या ईश्वर भी गलती कर सकते हैं .84 लाख योनियों में सर्व सुंदर रचना इंसान हैं और इंसानों में स्त्री – पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं ,पर “किन्नर” शब्द मानों कोई श्राप सा प्रतीत होता है. कहते हैं भगवान हम सब के साथ हमेशा नहीं रह सकते इसलिये ” माँ ” को बनाया. माँ अर्थात ममता की मूर्त .पर जब एक माँ किसी समान्य बालक को जन्म न देकर किसी किन्नर को जन्म देती है तो शा्यद ममता के स्थान पर सिर्फ ” मूर्त ” रह ज़ाती है – एक पत्थर की मूर्त .जो अपने कलेजे के टुकडे को गुमनामी के अन्धेरे में भटकने के लिये छोड देती है
लेकिन किसके डर से ? मैने तो बुजरगो से सुना है के – सिर्फ ईश्वर से डरो .पर हम समाज से डरते हैं ,वो समाज जो हमसे ही बना है .मैं शायद उस माँ की व्यथा की कल्पना भी न कर पाऊँ पर एक किन्नर की व्यथा को अपनी कुछ पंक्ततियो द्वारा आपके समक्ष रखने का थोड़ा सा प्रयास किया है

न नर हूँ ,न नारी हूँ ,न ही माँ किसी की और न बाप हूँ
हूँ ईश्वर की एक विकृत रचना या खुद के लिये ही श्राप हूँ .

न आगमन हुआ मेरा अम्बर से न उपजी मैं धरा से
कोई तो होगा पिता ?मेरा भी जन्म हुआ होगा किसी माँ से

कैसे और किसे बताऊँ ,ए माँ कैसे बीत रहा जीवन मेरा
एक बोझ सा है जीवन और भीड में भी हूँ मैं तनहां
य़ादों में एक घर तो है पर है वो धुंदला सा
तेरे आँचल की लोरी,पापा का दुलार
भाई – बहन से लडना- झगडना व रूठना मनाना
सब लगता है सपना अधुरा सा
हाँ ! पता है कारण भी इसका ए माँ
क्योंकी न मैं थी स्त्री पूरी_था पुरूष भी अधुरा सा
क्यों जीवन लगा मेरा ही दाव पर
हर रोज रिस्ते हैं ज़खम मेरे ,पर रखता नहीं मरहम कोई घाव पर
कौन हैं ज़िम्मेदार !!! माता पिता या समाज ???
कहीं मैने खुद ही तो कुलहाङी नहीं दे मारी अपने ही पांव पर

बदलकर अपना लिबास लगाकर माथे पर लाल चान्द बदल ली है अपनी पहचान खुद ,सिरे से अंत तक
पर जो न बदली ,वो है तेरी य़ाद आज तक

माँ! बचपन के खिलोने तो हकीकत बन गए, पर
मेरे सपने हकीकत में न जाने क्या बन गए ?
औरों के जलसों को रोशन हूँ करता ,पर पता है माँ
बस अंधेरा है मुझे अपना सा लगता
क्योंकी वो हमेशा मेरे गम छिपा जाता है
बस इसलिये मुझे अब अंधेरा भाता है
तेरी तरह वो समाज से भी नहीं डरता
जो हमेशा है मेरे साथ रहा करता

पता है माँ-
बस य़ादों का बिछोंना लिये सो जाता हूँ
सच सच बता माँ क्या मैं भी तुझे य़ाद आता हूँ ?

मुझे तो तेरे बिछौह की घडियां रोज मारती हैं
लेकिन सांस न चाहकर भी चलती रहती है
तेरी लोरी व फटकार की य़ाद नींद चुरा ज़ाती है
दिखा कर धुन्दली सी तस्वीर मुझे,मेरी अांख भिगा ज़ाती है
पर फिर भी मैं ज़िन्दा हूँ ! हाँ ज़िन्दा हूँ –
एक चलती लाश की तरह क्योंकी
मेरी साथी है बस और बस मेरी विरह

नीलम शर्मा

Language: Hindi
1 Like · 2030 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
लड़कियां जिसका भविष्य बना होता है उन्हीं के साथ अपना रिश्ता
लड़कियां जिसका भविष्य बना होता है उन्हीं के साथ अपना रिश्ता
Rj Anand Prajapati
परिश्रम
परिश्रम
Neeraj Agarwal
साक्षात्कार एक स्वास्थ्य मंत्री से [ व्यंग्य ]
साक्षात्कार एक स्वास्थ्य मंत्री से [ व्यंग्य ]
कवि रमेशराज
सारी व्यंजन-पिटारी धरी रह गई (हिंदी गजल/गीतिका)
सारी व्यंजन-पिटारी धरी रह गई (हिंदी गजल/गीतिका)
Ravi Prakash
हर कभी ना माने
हर कभी ना माने
Dinesh Gupta
🙅क्षणिका🙅
🙅क्षणिका🙅
*Author प्रणय प्रभात*
"मायने"
Dr. Kishan tandon kranti
खुशी पाने का जरिया दौलत हो नहीं सकता
खुशी पाने का जरिया दौलत हो नहीं सकता
नूरफातिमा खातून नूरी
पर्यावरण है तो सब है
पर्यावरण है तो सब है
Amrit Lal
*वो नीला सितारा* ( 14 of 25 )
*वो नीला सितारा* ( 14 of 25 )
Kshma Urmila
मरने वालों का तो करते है सब ही खयाल
मरने वालों का तो करते है सब ही खयाल
shabina. Naaz
सत्यं शिवम सुंदरम!!
सत्यं शिवम सुंदरम!!
ओनिका सेतिया 'अनु '
वक्त वक्त की बात है आज आपका है,तो कल हमारा होगा।
वक्त वक्त की बात है आज आपका है,तो कल हमारा होगा।
पूर्वार्थ
गोलियों की चल रही बौछार देखो।
गोलियों की चल रही बौछार देखो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
बच्चे बूढ़े और जवानों में
बच्चे बूढ़े और जवानों में
विशाल शुक्ल
कृष्ण सुदामा मित्रता,
कृष्ण सुदामा मित्रता,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
यदि कोई अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं से मुक्त हो तो वह मोक्ष औ
यदि कोई अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं से मुक्त हो तो वह मोक्ष औ
Ms.Ankit Halke jha
सम्भाला था
सम्भाला था
भरत कुमार सोलंकी
किसका  हम शुक्रिया करें,
किसका हम शुक्रिया करें,
sushil sarna
हुआ क्या तोड़ आयी प्रीत को जो  एक  है  नारी
हुआ क्या तोड़ आयी प्रीत को जो एक है नारी
Anil Mishra Prahari
मुक़्तज़ा-ए-फ़ितरत
मुक़्तज़ा-ए-फ़ितरत
Shyam Sundar Subramanian
कान खोलकर सुन लो
कान खोलकर सुन लो
Shekhar Chandra Mitra
तो क्या हुआ
तो क्या हुआ
Sûrëkhâ Rãthí
हमें अब राम के पदचिन्ह पर चलकर दिखाना है
हमें अब राम के पदचिन्ह पर चलकर दिखाना है
Dr Archana Gupta
रिश्तों में...
रिश्तों में...
Shubham Pandey (S P)
हमारे जैसी दुनिया
हमारे जैसी दुनिया
Sangeeta Beniwal
मुझे पतझड़ों की कहानियाँ,
मुझे पतझड़ों की कहानियाँ,
Dr Tabassum Jahan
दुर्भाग्य का सामना
दुर्भाग्य का सामना
Paras Nath Jha
सफर या रास्ता
सफर या रास्ता
Manju Singh
सामाजिकता
सामाजिकता
Punam Pande
Loading...