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18 Jan 2017 · 1 min read

कसक

“यक़ीनन यूँ तो बात आती नहीं,
कसक बस ये आँखे जताती नहीं।
सभी खिड़कियाँ है,खुली सी मगर ,
हवा भी गुजरकर सताती नहीं।
निगाहों में उसकी छुपी अर्जियां,
नजाकत तो पर्दा उठाती नहीं।
चुरा जो ली है नींद तुमने मेरी,
ये सपने मुझे अब दिखाती नहीं।
दुआओं में माँगा है उसने मुझे,
रज़ा हर किसी को मिलाती नही।
कलम डूब जाती है स्याही में जब,
घडी वक़्त मुझको बताती नहीं।
#रजनी

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