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16 Nov 2018 · 1 min read

कविता

“माँ”
—–

बारिश की बूदों में माँ तू, प्रेम सरस बरसाती है।
तेज धूप के आतप में तू ,छाँव बनी दुलराती है।

तुझसे मेरा जीवन है माँ, मैं तेरी ही परछाई।
तेरी मूरत उर में रख माँ, पूज सदा ही मुस्काई।

मैं तेरी बाहों में झूली, लटक-लटक कर मदमाती।
याद करूँ जब बचपन अपना,सिसक-सिसक कर रह जाती।

याद नहीं घुटनों पर चलकर,जाने कब मैं खड़ी हुई।
कितनी बार गिरी सँभली मैं,अँगुली थामे बड़ी हुई।

देख अश्क मेरे नयनों में,लपक दौड़ कर तू आती।
अंक लगा मुझको तू रोती,मेरे सपने सहलाती।

जब भी कोई ज़िद करती मैं,बड़े प्यार से समझाती।
सात खिलौने देकर मुझको, चंदा मामा दिखलाती।

काला टीका, दूध-मलाई ,माँ के खेल-तमाशे थे।
भूखी-प्यासी रहकर माँ ने, मुझको दिए बताशे थे।

नेह पगे चुंबन दे देकर, माँ ने बहुत हँसाया है।
आलिंगन में भर-भर मुझको,ढेरों लाड़ लड़ाया है।

तेरे आँचल की ममता माँ, मुझको बहुत रुलाती है।
आज कहे रजनी माँ तुझसे,याद बहुत तू आती है।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
3 Likes · 256 Views
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