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9 Oct 2018 · 1 min read

कविता

“कौन मनाएगा दीवाली?”

घर -आँगन लक्ष्मी बिन सूना,
नहीं तेल, दीया, बाती।
रौशन दुनिया लड़ियों से है,
जगमग ज्योति नहीं भाती।

मान दीप का ही ग्रसता है-
जेब कुम्हार की खाली।
कौन मनाएगा दीवाली?

लाखों रावण फूँके हमने,
मन का रावण ज़िंदा है।
महलों में सुख मानव भोगे,
बेघर आज परिंदा है।

बुझी हुई है प्रीत की ज्योति-
रात अमावस की काली।
कौन मनाएगा दीवाली।।

घर-घर दीप उजाला करके,
पौराणिक गाथा गाता।
जन-जन के मन में प्रकाश भर,
नाश तिमिर का कर जाता।

सरहद फ़ौजी जान गँवाते-
रोती ममता सूनी थाली।
कौन मनाएगा दीवाली।।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
1 Like · 289 Views
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