कविता: भगवान का पता
हमने लिखना खत चाहा,पर पता आपका पाया नहीं।
हमने पूछा हर किसी से,पर किसी ने बताया नहीं।।
१.हमने पूछा फूलों से,फूल मुस्क़रा दिए।
हमने पूछा तारों से,तारे टिमटिमा दिए।
हमने पूछा चाँद से,चाँद बोला सोचूँगा।
जब सुबह को जागे हम,चाँद नज़र आया नहीं।
हमने लिखना खत………………।
२.हमने पूछा नदियों से,नदियां तो बहती रही।
हमने पूछा सागर से,सागर ने कुछ न कही।
हमने पूछा बादल से,बादल बोला सोचूँगा।
बादल कहीं बरस गया,फिर गगन में छाया नहीं।
हमने लिखना खत……………….।
३.हमने पूछा चिड़ियों से,चिड़ियां चीं-चीं करने लगी।
हमने पूछा कोयल से,कोयल कूह-कूह करने लगी।
हमने पूछा बुलबुल से,बुलबुल बोली सोचूँगी।
फिर बुलबुल ने गाकर सुनाया,पर समझ आया नहीं।
हमने लिखना खत……………….।
४.मन में फिर एक हूक उठी जैसे कोयल कूक उठी।
मन में फिर प्रकाश हुआ जैसे किरणें फूट उठी।
मन बोला मैं बताता हूँ सुन ले मेरे मीत सभी।
मैं ही हूँ घर उनका कोई और पता बनाया नहीं।
हमने लिखना खत……………….।