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19 Apr 2020 · 1 min read

ज़ब भी कभी मैं कविता के लिए मंच पर ज़ाऊंगी

जब भी कभी मैं कविता के लिए मंच पर ज़ाऊंगी
तो सामने एक कुर्सी मैं आप की भी रखवाऊंगी

अगर आप आओगे तो मैं धन्य हो जाऊंगी
फिर मैं सब को अपनी कविता के सूतरधार से मिलवाऊंगी
सामने एक कुर्सी मैं आप की भी रखवाऊंगी

आप को देख कर क्या कविता मैं पढ़ पाऊंगी
दिल ही दिल में आप की बांहो में समा ज़ाऊंगी
सामने एक कुर्सी मैं आप की भी रखवाऊंगी

कुछ ज़्यादा ही दूर निकल ग ई मैं वास्तविकता से
क्या अपना ये स्वपन मैं पूरा कर पाऊंगी
सामने एक कुर्सी मैं आप की भी रखवाऊंगी

ज़ाने क्यों लगता है कि आप नहीं आओगे
पर आप की खाली कुर्सी से ही आप की शिरकत हो ज़ाएगी
सामने एक कुर्सी मैं आप की भी रखवाऊंगी

जब कभी मैं कविता के लिए मंच पर ज़ाऊंगी
सामने एक कुर्सी आप की भी रखवाऊंगी।

Language: Hindi
437 Views
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