” कटी उम्र यों ही ” !!
खेत, खलिहान ,
पगडंडियां संकरी !
घूँघट ,पनघट ,
हंसी रही सिकुरी !
मर्यादा ,पहरे ,
बातें अनकही !!
कलकल नदी ,
बनी जवनिया !
रेशम रिश्ते ,
मृदंग सा मनिया !
कटे किनारे ,
रहे बहते ही !!
अब ठहराव ,
लगे है आया !
परिवर्तन से ,
मन हरषाया !
आँखें संतोषी ,
प्यास अब सतही !!