और कितना बोझ उठायेगी गंगा ?( विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष)
अरे इंसान ! कितना बोझ उठायेगी ,
यह हमारी गंगा !
अब तक तुम्हारे पापों का बोझ ,
उठाती आ रही है ।
तुम्हारे पाप तो फिर भी कम न हुए ,
अपितु और बढ़ गए ।
तुम्हारे पाप तो अभी आसमान छूने लगे हैं।
और कितना पाप धोएगी हमारी गंगा ?
तुम्हारे पाप धोते धोते मैली हो गई बेचारी ।
स्वर्ग से उतरी वो देवी ,निर्मल ,सुन्दर ,
पवित्र थी प्यारी थी जितनी ।
दशा उसकी बिगड़ गई उतनी ।
और अब तो हद हो गई !!
तुम्हारी लाशें भी ढोए हमारी पतित पावनी गंगा!!
तुम तो इतना गिर चुके हो ।
तुम्हारा पतन हो चुका है ।
तुम्हारा बोझ तो बेचारी धरती भी उठा नही
पा रही है ।
और अब बेचारी गंगा !!
यह तुम्हारे पतन का भागीदार क्यों बन रही है ?
हे ईश्वर ! इस मानव को कुछ तो समझ दो ।
बंद करे यह प्रदूषण फैलाना ।
बंद करे गंगा में लाशें फेंकना ।
यह मनुष्य का मनुष्य के प्रति अपमान और तिरस्कार
ही नहीं ।
हमारी पृथ्वी माता और गंगा मां के प्रति भी
अपमान और तिरस्कार है।
यह हमारी पूजनीय और श्रद्धेय माताएं कितना
बर्दाश्त करेंगी ? और कब तक ?
उनके आंसू किसी को देख नहीं रहे ,
उनके दर्द से म्लान हुए मुख भी किसी को
दिख नहीं रहे ।
उनकी कराह भी कोई सुन नहीं ,
रहा ।
तुम ही सुन लो ना !
हे ईश्वर ! इनपर कुछ दया करो मां।