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15 Jun 2020 · 1 min read

ओझल।

कलम उठती नहीं कुछ लिखने को,
आज लिखने का फिर भी करता दिल,
जीवन में थे कुछ लोग भी ऐसे,
दिल कहता उनसे जाके मिल,

कुछ तो अभी भी साथ है मेरे,
कुछ हो गए मेरी आंखों से ओझल,
कुछ यादें तो हैं मीठी बहुत,
तो कुछ से दिल हो जाता बोझल,

पलट के अतीत के कुछ पन्नों को,
दिल उसी दौर मे जाना चाहे,
कुछ के पास मैं लौटना चाहूं,
शायद मेरे पास भी कोई आना चाहे,

बना के एक दूसरे से दिल का रिश्ता,
दुनिया की भीड़ में खो गए हम,
अनायास ही सोच के कुछ बातें,
हो जाती यूं ही आंखे नम,

कुछ वाकिफ कराते हर बात से अपनी,
मैंने भी उनसे राज़-ए-दिल खोले,
एक अच्छा समय था साथ में बीता,
फिर अलग हो गए हम बिना कुछ बोले,

वक्त बदला हालात बदले,
नए फूल जीवन में खिलने लगे,
पुराने तो हमेशा ही रहेंगे ख़ास,
क्या हुआ जो लोग नये मिलने लगे,

अंजाने में चुभी हो बात कोई,
तो दिल को अपने साफ ही रखना,
इंसान हूं मैं भगवान नहीं,
तुम गलतियों को मेरी माफ भी करना।

कवि-अंबर श्रीवास्तव

Language: Hindi
5 Likes · 7 Comments · 443 Views
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