अब ज़िद यही है मेरी – आरक्षण साफ़ करना
मेहनत करूँ मैं दिल से,
फिर भी मिले न अपना।
कुछ लोग भी हैं ऐसे,
जो छीने मेरा सपना।।
पढ़ पढ़ हुआ पढ़ा मैं,
हरदम रहा हूँ अब्बल।
पढ़ना न आया जिनको,
वो पा रहे हैं डब्बल।।
कैसी है तेरी नीति,
कैसा तेरा प्रशासन।
जो हो कुलीन पैदा,
उसको मिले न राशन।।
ऐ भेद भाव कैसा,
जहाँ जीतता दुःशासन।
यहां देखिए गधे अब,
घोड़ों पे करते शासन।।
जिसपे किया भरोसा,
उसने ही दिया धोखा।
प्रतिभा करे पलायन,
‘अपि अन्य’ खाये रूखा।।
ऐ अन्य शब्द क्या है
कोई हमे बताए।
क्या हम नही यहाँ के
अब हम किधर को जाएं।।
जाति धरम के बल पर
कानून यहाँ पे बनता।
हर जगह नजर डालो
बस आरक्षण ही चलता।।
ये कैसा देश मेरा,
यहाँ लुट रहा मैं हरदम।
मुझको चढ़ाया फाँसी,
घुट रहा मेरा अब दम।।
अगले जनम में भगवन,
अनुसूची जन बनाना।
पढ़ना पड़े न मुझको,
मुझे मेरा हक दिलाना।।
मुझे काला पानी दे दो,
जहाँ भेद भाव हो न।
छोड़ूँ मैं मातृभूमि,
चाहे स्वर्ग भाव हो न।।
पुरखो मुझे समझना,
जन्मभूमि माफ़ करना।
अब ज़िद यही है मेरी,
आरक्षण साफ़ करना।।