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11 Dec 2016 · 1 min read

उस पे दुनियाँ लुटाने को जी चाहता है

उस पे दुनियाँ लुटाने को जी चाहता है
सुलूक-ए-इश्क़ आज़माने को जी चाहता है

बड़े तकल्लुफ में गुज़री है ज़िंदगी कल तक
आज कुछ बेबाक़ होने को जी चाहता है

कोइ नज़र बिछी हो जहाँ अपनी भी राह में
उस रहगुजर से गुज़रने को जी चाहता है

महबूब की पुरनूर नज़र को कर के आइना
अब कुछ बनने -सँवरने का जी चाहता है

क़ायनात भी आके रुकी थी जहाँ कुछ देर
उसी एहसास में जीने को जी चाहता है

अपने लिए भी धड़कउठे किसी सीने का दिल
अब आम से ख़ास होने को जी चाहता है

मोती हैं वो पल मोहब्बत के ख़ज़ाने से
ज़िंदगी के सिज़दे ‘सॅरू’ ये जी चाहता है

1 Like · 342 Views
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