उसे पाने की खातिर….
उसे पाने की ख़ातिर क्या कुछ नहीं किया मैंने
दिन को उसे देखते रहे रातों को सोचा मैंने
निगाहें बस देखते रहना चाहती थी सिर्फ उन्हें
उनकी तस्वीर को दिल में ही बसाया मैने
मेरे नसीब में शायद उसका प्यार न लिखा था
नाहक ही चैनों सुकूँ अपना गवायां मैंने
प्यार की मज़बूरी ही कुछ ऐसी थी ठाकुर
उसके सिवा सबको भुलाया मैंने
उसे तो मेरी फ़िक्र थी ही नहीं कभी
फ़िक्र करके उनकी अपना दिल जलाया मैंने