इश्क़ में डूबने से दिल को बचाऊँ कैसे
इश्क़ में डूबने से दिल को बचाऊँ कैसे
ये है सागर से भी गहरा ये बताऊँ कैसे
हर जगह आप ही हमको तो नज़र आते हो
दूर जाना भी अगर चाहूं तो जाऊँ कैसे
खारे पानी का समन्दर है जिधर भी देखो
प्यास मैं अपनी बुझाऊँ तो बुझाऊँ कैसे
कैसा तूफान उठा आज मेरी बस्ती में
रेत का घर है हवाओं से बचाऊँ कैसे
अब समझ आता नहीं तुझसे यहां मिलने को
मैं नये रोज बहाने भी बनाऊँ कैसे
है चमक आँखों में , खिलती ये गुलाबी रंगत
राज़ इस दिल का बता दे मैं छुपाऊँ कैसे
दिल धड़कने से भी बेचैनियाँ बढ़ जाती है
रोग है प्रेम का उपचार कराऊँ कैसे
झूठ इस दिल ने ही बोला भी है माना भी है
इस को मैं आइने जैसा ही बताऊँ कैसे
बसते हैं ‘अर्चना’ आंखों में तुम्हारे सपनें
बह न जायें कहीं इनको मैं रुलाऊँ कैसे
08-12-2017
डॉ अर्चना गुप्ता