” इरादा कत्ल का या , साज़िशों का दौर है ” !!
गहरा सागर ,
डूबने का डर !
जाने कैसा ,
होगा मंज़र !
अब है परवाह किसको ,
दूर तक ना छोर है !!
हैं होठों पर ,
कितने फ़साने !
मद के प्याले ,
राम जाने !
प्यास जन्मों की मिटेगी ,
हाथ अब ना ठौर है !!
रंगीनियां अब ,
रंग चढ़ी हैं !
उंगलियों में ,
जादूगरी है !
कशिश आंखों में कितनी ,
चाहतें पुरज़ोर है !!
डूबे हुए हो ,
सोच गहरी !
हम तो मौजी ,
ठहरे लहरी !
अंज़ाम तो रब के हवाले ,
लुट गये ये शोर है !!