इन अश्कों से जाना ग़ज़ल हो रही है
इन अश्कों से जाना ग़ज़ल हो रही है
पिला गम की हाला ग़ज़ल हो रही है
ये तन्हाइयां साथ हैं अब हमारे
न आवाज देना ग़ज़ल हो रही है
लजाती निगाहों में झाँका जो हमने
मुहब्बत की देखा ग़ज़ल हो रही है
लिखें धड़कनें और खामोश लब हैं
बिना शब्द उम्दा ग़ज़ल हो रही है
दबा दर्द ही निकला था आह बनकर
कि लोगों ने समझा ग़ज़ल हो रही है
गए प्यार में डूब यूँ ‘अर्चना’ हम
जिधर देखें लगता ग़ज़ल हो रही है
डॉ अर्चना गुप्ता