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13 Sep 2017 · 1 min read

इंसान का मजहब

बैठे सब खुद का लिये किसको सुनाया जाए
अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए

भेद कोई न हो इंसान रहें सब हो कर
एक मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

एक क़िरदार मिला जो है निभा लें उसको
क्यूँ ख़ुदा खुद को यहाँ ख़ुद से बनाया जाए

ज़द में आकाश है क़दमों के तले है ये ज़मीं
हौसलों को लगा पर क्यों न उड़ाया जाए

हो सबब कोई कि मरने पे सभी याद करें
चलते चलते ज़रा नेकी भी कमाया जाए

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