Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Dec 2016 · 2 min read

आदर्श शिक्षा-व्यवस्था का त्रिस्तरीय प्रारूप

रोजगार सुनिश्चित करने में असमर्थता के चलते शिक्षा के प्रति नई पीढ़ी में बढ़ती अरुचि..ऐसा गम्भीर विषय है जिसकी और अनदेखी नही होनी चाहिए। भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में तो इस तरफ़ ध्यान देने की आवश्यकता और अधिक है। देश की शिक्षा-प्रणाली अच्छे संस्कारों के साथ-साथ हर एक के लिए रोजगार की गारंटी भी बने-यह वक्त की प्रबल मांग है।
बतौर शिक्षक लगभग तीन दशकों के अपने अनुभव के आधार पर मेरा विनम्र सुझाव है कि राष्ट्र के शैक्षिक ढांचे में बहुत शीघ्र बड़े बदलाव आने चाहिएं। शिक्षा-व्यवस्था में यह त्रिस्तरीय-ढांचा कारगर हो सकता है :-

1.कक्षा आठ तक सार्वभौमिक सामान्य शिक्षा :

इसमें अहम एवं दैनिक जीवन के उपयोगी विषयों की सामान्य जानकारी का समावेश किया जाए। पाठ्यसामग्री सुसंस्कारित करने वाली तथा शिक्षण-प्रणाली विद्यार्थी एवं क्रिया-केंद्रित रखी जानी चाहिए।

2.कक्षा नौ से बारह तक अनिवार्य विशिष्ट शिक्षा :

कक्षा नौ से बारह तक रूचि, पृष्ठभूमि, रुझान आदि के दृष्टिगत प्रत्येक विद्यार्थी के लिए ‘अनिवार्य व्यावसायिक-प्रशिक्षण’ की व्यवस्था की जाए। प्रत्येक विद्यालय में बाल-मनोविज्ञान तथा व्यावसायिक-मार्गदर्शन के विशेषज्ञ शिक्षकों के पद सृजित किए जाएं ..जो मोबाइल, कम्प्यूटर, टीवी, रेफ्रिजरेशन, मोटर-वाहन, फोटोग्राफी, अभिनय, गायन, बढ़ईगिरी, खेलकूद आदि चुनने में मदद करें। इन चार वर्षों में..1.व्यावसायिक-अध्ययन सैद्धान्तिक 2.व्यावसायिक-अध्ययन प्रायोगिक तथा 3. कला, विज्ञानं या कामर्स में से किसी एक निकाय का सामान्य-अध्ययन…. इन तीनों को समान अनुपात में महत्व मिले..ताकि इस गहन शिक्षण-प्रशिक्षण के उपरांत, विद्यार्थी विश्व के किसी भी भाग में जाकर अपनी आजीविका चला सकें।

3.ऐच्छिक उच्च-शिक्षा :

चार वर्षीय ‘अनिवार्य विशिष्ट शिक्षा’ के पश्चात इच्छुक विद्यार्थियों हेतु स्नातक, स्नातकोत्तर या इससे भी ऊँची शिक्षा, शोध-कार्य आदि के पर्याप्त अवसर भी खुले रखे जाने चाहिएं।

यह सच है कि उपरोक्त प्रस्तावित ढांचे को स्थापित करने के लिए बड़े स्तर पर प्रशिक्षित शिक्षकों, धन तथा अन्य साधनों की आवश्यकता होगी। लेकिन मेरा मानना है कि अपनी नई पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिए किसी भी राष्ट्र को ऐसा व्यय उठाने से इंकार नही हो सकता। फिर यह भी सत्य है कि दृढ़ इच्छाशक्ति तथा उचित कार्य-योजना कठिन से कठिन लक्ष्य को सम्भव बना सकते हैं।
इस बाबत आपकी विवेकपूर्ण टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा रहेगी!

विनीत/आपका
अनिल शूर

Language: Hindi
811 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मीठा गान
मीठा गान
rekha mohan
*हाथ में पिचकारियाँ हों, रंग और गुलाल हो (मुक्तक)*
*हाथ में पिचकारियाँ हों, रंग और गुलाल हो (मुक्तक)*
Ravi Prakash
"वो पूछता है"
Dr. Kishan tandon kranti
राहुल की अंतरात्मा
राहुल की अंतरात्मा
Ghanshyam Poddar
रिश्तों की रिक्तता
रिश्तों की रिक्तता
पूर्वार्थ
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Sidhartha Mishra
संज्ञा
संज्ञा
पंकज कुमार कर्ण
🚩एकांत महान
🚩एकांत महान
Pt. Brajesh Kumar Nayak
प्रेम की डोर सदैव नैतिकता की डोर से बंधती है और नैतिकता सत्क
प्रेम की डोर सदैव नैतिकता की डोर से बंधती है और नैतिकता सत्क
Sanjay ' शून्य'
मेरे मरने के बाद
मेरे मरने के बाद
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
मन को समझाने
मन को समझाने
sushil sarna
खोटा सिक्का
खोटा सिक्का
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
तनहाई की शाम
तनहाई की शाम
Shekhar Chandra Mitra
चाहत
चाहत
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
हड़ताल
हड़ताल
नेताम आर सी
मन का कारागार
मन का कारागार
Pooja Singh
बेशक नहीं आता मुझे मागने का
बेशक नहीं आता मुझे मागने का
shabina. Naaz
तेवरी
तेवरी
कवि रमेशराज
क्या सितारों को तका है - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
क्या सितारों को तका है - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
ईश्वर का प्रेम उपहार , वह है परिवार
ईश्वर का प्रेम उपहार , वह है परिवार
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
२९०८/२०२३
२९०८/२०२३
कार्तिक नितिन शर्मा
*** तूने क्या-क्या चुराया ***
*** तूने क्या-क्या चुराया ***
Chunnu Lal Gupta
औरों के धुन से क्या मतलब कोई किसी की नहीं सुनता है !
औरों के धुन से क्या मतलब कोई किसी की नहीं सुनता है !
DrLakshman Jha Parimal
स्कूल जाना है
स्कूल जाना है
SHAMA PARVEEN
मातृ दिवस
मातृ दिवस
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
ये गजल नही मेरा प्यार है
ये गजल नही मेरा प्यार है
Basant Bhagawan Roy
■ आज की बातH
■ आज की बातH
*Author प्रणय प्रभात*
पास नहीं
पास नहीं
Pratibha Pandey
ऐ मेरे हुस्न के सरकार जुदा मत होना
ऐ मेरे हुस्न के सरकार जुदा मत होना
प्रीतम श्रावस्तवी
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
Sukoon
Loading...