आदमी बुलबुला नहीं होता
ग़ज़ल
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जिन्दगी में मज़ा नही होता
दर्दे- दिल जो पला नहीं होता
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जो मैं चलता न जानिबे मंजिल
पाँव छालों भरा नहीं होता
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मरते बेमौत ही हजारों फिर
दर्द ही गर दवा नहीं होता
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गर बुझाते न पेट की आतिश
हाथ मेरा जला नहीं होता
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दौरे गर्दिश में टूटते हैं दिल
आदमी बेवफ़ा नहीं होता
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दिल की फ़ितरत न होती शीशे की तो
कोई फिर दिलजला नहीं होता
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मैं भी हो जाऊँ बेवफ़ा लेकिन
सबका दिल एक सा नहीं होता —– गिरह
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फिर तो डर होता डूब जाने का
तू अगर नाखुदा नहीं होता
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गर ये तूफां न मौत के आते
आदमी बुलबुला नहीं होता
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आप मिलते न जो हमें “प्रीतम”
पुष्प दिल का खिला नहीं होता
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प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
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