आतंकी को ठौर नहीं
आतंकी को ठौर नहीं
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घाटी जलती है जलने दो
तुम आतंकी को मरने दो
मौतों की गणना करो नहीं
सेना को अविचल लड़ने दो।
सेना का तुम गुणगान करो
सहिद का मान- सम्मान करो
ये रक्षक हैं कुछ औऱ नहीं
अब आतंकी को ठौर नहीं।
यें आतंकी एक तक्षक हैं
यें मानवता के भक्षक हैं
इनको क्यों आश्रय देते हो
तुम भी तो हिन्द के बेटे हो।
क्या तेरा कोई फर्ज नहीं
इस राष्ट्र का तुझपे कर्ज नहीं?
है कायरता कुछ औऱ नहीं
अब आत्मसमर्पण और नहीं।
ऐ आतंकी तड़पायेंगे
तुझे वंश सहित खाजायेंगे
इनपे ना अश्रू बहाओ तुम
नहीं इनका मान बढ़ाओ तुम।
जो मानवता के भक्षक हैं
वो तेरे कैसे रक्षक हैं
इनका यूं ना गुणगान करो
नहीं राष्ट्र द्रोह का कार्य करो।
कब तक यूँ हीं शरमाओगे
आतंक से तुम घबराओगे
आओ आतंक का नाश करे।
अब राष्ट्र धर्म का ध्यान करें।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”