आँखों का कसूर
मीटर-222-221-222,222-121-222
इन आँखों का यार इक ही तो,प्यारा-सा कसूर देखा है।
दिन में तेरा दीद रातों में,ख़्वाबों का सरूर देखा है।।
जलते हैं दीये वफ़ा के ही,दिल के आशियाने में हमदम।
बस यादों का सिलसिला बनता,हँँसके दर्द का हसीं मरहम।
चाहत के आँगन खिला तुमको,फूलों-सा हुज़ूर देखा है।
दिन में तेरा दीद रातों में,ख़्वाबों का सरूर देखा है।
खुल उम्मीदों के झरोखे से,करती इंतज़ार आने का।
कितना अच्छा फलसफ़ा है ये,तन्हाई दिली छिपाने का।
प्रीतम आँखों में तुझी को बस,हरपल में ज़रूर देखा है।
दिन में तेरा दीद रातों में,ख़्वाबों का सरूर देखा है।
इन आँखों का यार इक ही तो,प्यारा-सा कसूर देखा है।
दिन में तेरा दीद रातों में,ख़्वाबों का सरूर देखा है।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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