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22 Jul 2017 · 1 min read

“अहंकार” दोहे

“अहंकार” दोहे
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अहंकार को त्याग दो, सर्प भाँति विषधार।
अवसर पा डँस लेत है,नहीं बचा उपचार।

अहंकार है शूल सम, देता घात हज़ार।
मधुर वचन औषध सदा, हरें पीर संसार।।

दंभ कबहुँ नहिं कीजिए, दंभ पतन आधार।
दंभ चढ़ा सिर रावणा, प्रभू कीन्ह संहार।।

काची माटी तन गढ़ा,काहे करे गुमान।
अंत काल पछतायगा,नहीं रहेंगे प्राण।।

मैं मैं रे मन क्या रटे,छोड़ छाँड़ि सब काम।
मन के भीतर लौ जला, मिल जाएँगे राम।।

पूत जनम पर रे मना,काहे करे गुमान।
धन दौलत को पायके,भूल जायगा मान।।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-९८३९६६४०१७)

Language: Hindi
1 Like · 5949 Views
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