असर
नफरतो के असर दिखाई दे रहे है
हर तरफ कहर दिखाई दे रहे है
असर क्या हुआ जश्ने आज़ादी का
लाशो के शहर दिखाई दे रहे है
गाँव की मिट्टी गुम हो गई है कहीं
रिश्ते नाते नहीं दिखाई दे रहे है
भटक रहे है नौजवां राहे मंजिल की
पढ़कर भी अनपढ़ दिखाई दे रहे है
मेरी शक्सियत भी कहीं खो चुकी
बुढ़ापे के असर दिखाई दे रहे है
मै भारत हूँ मुझे मत बांटो ‘’बनारसी’’
मुझमे जीने के और दिन दिखाई दे रहे है