अब तो हम अड़ बैठे है!
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पीठ पे वार किया था तुने, सीने पर चढ बैठे है।
अब ना छोड़ेंगे वो गीदड़, अब तो हम अड़ बैठे हैं।।
मान सहोदर चुप बैठे थे, समझ गया तू कायर हैं।
शान्ति का संदेश पेठाया, लगा तुझे हम शायर है।।
छेड़ दिया है शेर को तुने, मूढ़ न तू बच पायेगा।
भाग भेड़िये भाग कहाँ तक, हम भी देखें जायेगा।।
दंभ नाश कर दनुज मिटाने, तुमसे हम लड़ बैठे है।
अब ना छोड़ेंगे वो गीदड़, अब तो हम अड़ बैठे हैं।।
समय विनाशे विपरीत बुद्धि, फिर पीछे पछतायेगा।
गर जो इतने से न सम्हला, नक्शे से मिट जायेगा।।
मौत पड़ी जो पीछे गीदड़, भाग शहर को आया है।
मृत्यु का सामना सभी वो, संग ही अपने लाया है।।
दुर्जन की दुर्जनता का हम, दमन करें चढ़ बैठे हैं।
अब ना छोड़ेंगे वो गीदड़, अब तो हम अड़ बैठे है।।
जैसी करनी वैसी भरनी, फल वैसा ही पायेगा।
बोया पेड़ बबूल का तुने, आम कहाँ से आयेगा।।
टेढी दुम तू कुत्ते जैसी, भव ने भी है मान लिया।
खड़ा रहे तू एक टांग पे, हमने भी अब ठान लिया।।
मूंग दलेंगे सीने तेरे, अब तो हम चढ बैठे है।
अब ना छोड़ेंगे वो गीदड़, अब तो हम अड़ बैठे हैं।।
………स्वरचित, स्वप्रमाणित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
??मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार