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30 Mar 2020 · 1 min read

अपराधी

लघुकथा
शीर्षक -अपराधी
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” अरे, दादी आप बेवजह ही गौतम पर शक कर रही हो, वो कितना अच्छा है,,, जब से हमारे घर आया है, किसी को भी कोई भी काम नही करने देता, वो तो चुटकी बजाते ही सारे काम कर देता है ..मम्मा पापा भी कितने ख़ुश है उससे, फिर आप क्यों इतना नफरत करती हो उससे ” – सिमरन ने शिकायती लहजे में अपनी दादी मां से कहा l

” तू रहने दे बिटिया, ज्यादा उस पहाड़ी की तरफदारी न कर, मुझे तो शक्ल से ही अपराधी लगता है, पता नहीं कब कौन सा गुल खिला जाये कम्बख्त, मुझे तो नींद भी नहीं आती रात भर “- दादी ने कहा l

” बस भी करो दादी उस गरीव को कोसना… ये लीजिए पापा से बात कीजिये ” – फोन पकड़ाते हुए सिमरन ने कहा l

” हैलो बेटा.. कहाँ हे तू अभी तक आया क्यों नहीं ”
” अम्मा गौतम का एक्सीडेंट हो गया, मै अभी हॉस्पिटल में हूं.. वो मुझे बचाने के चक्कर में गाड़ी की चपेट में आ गया, परेशान होने की कोई बात नहीं ड्रेसिंग करवा के घर आता हूँ ”

” क्या हुआ दादी” – सिमरन ने कहा l
” कुछ नहीं बिटिया मै गलत थी,अपना खिदमतगार गौतम अपराधी नही है वो तो एक फरिश्ता है जिसने आज तेरे पापा को बचा लिया…… ”

राघव दुबे
इटावा (उo प्रo)
84394 01034

Language: Hindi
1 Comment · 280 Views
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