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2 Jan 2019 · 1 min read

अन्नदाता

धरती माँ की गोद में जन्मा
धरती पर ही जीवन यापन कर बड़ा हुआ
धरती पर ही लगन परिश्रम कर बढ़ने वाला
सर्दी गर्मी बरसात प्रत्येक मौसम में
काम करने वाला मैं पुत्र धरती का
नित प्रतिदिन परिश्रम करता
मेरी ही मेहनत से खेत खलिहान लहलहाते
स्वर्णिम भाँति फसल चहु ओर लहराती
सबका पोषण करने वाला
सब इच्छाओ को पूरी क रने वाला
रहता परे में अपनी इच्छाओं से
मेरे ही कारण खेतों में अनाज उगता
स्वर्णिम भाँति फसल लहलहाती
बड़े बड़े गोदाम भरे जाते
सबके घरों में अनाज पहुँचता
फिर भी मैं पीछे क्यों रह जाता
सर्दी गर्मी धूप बरसात सबकी मार सहता
कठिन परिश्रम कर अनाज उगाता
बड़े बड़े लोगों के एहसानो तले दबता
क्यों हर बार मैं ही पिछे रह जाता
सबका भरण पोषण करने वाला
मेरा अपना अस्तित्व कुछ नहीं
इतने पर भी
विपरीत परिस्थितियो का सामना करता
तथा अन्नदाता कहलाता

Language: Hindi
2 Likes · 253 Views
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