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5 Jul 2017 · 1 min read

अनुभूतिया

जीवन की राहे सूनो हो चली
मन उदासी के सागर में डूबता रहा
राहे जैसे खत्म होने को है
सांझ की लालिमा
रात्रि की कालिमा
सभी घेरे हुये है मुझको
फिर भी जीता हूँ मै
बीते हुये कल की
उन सुर्ख यादो तले
उस कल की संगीत लहरी पर
मन की उन अतरंग गहराइयो में
जहां कुछ क्षणों के लिये
खुशिया मिली थी
ओर फिर खो गई
अनंत के आकाश में
जहाँ काले बिंदु है
उस राख के धुएं से निर्मित
स्वछन्द विचरण करते हुऐ

डॉ सत्येन्द्र कुमार अग्रवाल

Language: Hindi
441 Views
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