Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Sep 2017 · 4 min read

रोज कुआं खोदते रोज पानी पीते दिहाड़ी मजदूर –व्यंगात्मक कथा

रोज कुआं खोदते रोज पानी पीते दिहाड़ी मजदूर ।
प्रात : काल जब ग्राम वासी जाग कर अपनी दिनचर्या पूरी करते हैं , तब उनमें से कुछ ग्रामीण गाँव छोड़ कर शहर की तरफ पलायन करते दिखते हैं । बड़े –बड़े शहरों में मुख्य चौराहों पर या घंटाघरों पर ये ग्रामवासी झुंड –के झुंड रोजगार की तलाश में खड़े मिलते हैं । ग्रामीणों का ये संगम प्रात :08 बजे से 10 बजे तक होता है । शहर के लोग अपना अपना गृह निर्माण कार्य , मरम्मत का कार्य , रंगाई –पुताई हेतु इन ग्रामीण कामगारों को न्यूनतम मजदूरी दर पर किराए पर ले जाते हैं । इनमे रेज़ा , पुरुष मजदूर , मिस्त्री , प्लमबर आदि कारीगर होते हैं, जो दूर देहात से आते हैं , और चाल या झुग्गी झोपड़ियों में रात्रि निवास करते हैं, और अपना गुजर –बसर करते हैं । कुछ मजदूर टोली बना कर व्यवसाय के रूप मे कार्य करते हैं और ठेका ले कर कार्य करते हैं । कुछ खाना –बदोश लोग ग्राम मे जब कृषि कार्य नहीं होता है तब अपनी आमदनी बढ़ाने हेतु ये कार्य करते हैं। कुछ तो पीढ़ियों से ये कार्य करते आ रहे हैं ।इनका कार्य छट्ठी पर कुआं खोदना होता है । कभी –कभी इन लोगों का बुरे ,कडक ठेकेदारो या कंजूस सेठों से पाला पड़ता है जो रोब दिखा कर , डांट –डपट कर इनकी दिहाड़ी में कटौती करते हैं और इनकी ढेर सारी बुराइयाँ करते नहीं थकते हैं । इन्ही लोगों का उसूल चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए होता है । तब ये ग्रामीण बेबस –लाचार कामगार अपनी बनाई कृति को देख कर ही संतोष करते हैं और अपनी बेबसी का रोना रोते हैं ।
ग्राम वासियों की पीढ़ियाँ दर पीढ़ियाँ खप जाती हैं परंतु इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार नहींहो रहा है । अत : ये विस्थापित ग्रामीण जुए , शराब के अड्डो पर नशा खोरी करते अक्सर देखे जाते हैं एवं गंभीर बीमारियों, दुर्घटनाओं से ग्रस्त होकर असमय ही अपनी जान गवाते हैं ।कुसंग बुराइयाँ , नशा इनका शौक होता है । अक्सर रात्रि के समय सुनसान इलाकों में ये गंभीर वारदातों जैसे लूट , हत्या डकैती इत्यादि में भागीदार होते हैं ।
भगवान झूठ ना बोलवाये, इन्ही लोगों मे से कुछ ग्रेजुएट पढे लिखे शिक्षित लोग भी होते हैं जो बेरोजगारी की मार सेक्षुब्ध होकर अपना शौक अंधकार के समय लूटमार कर पूरा कर लेते हैं ।दिन में रंगाई –पुताई या निर्माण कार्य करते हैं । इन्ही मे से कुछ दिहाड़ी मजदूरों से पुछताछ करने पर पता चला है कि ये मजदूर हाइ स्कूल या बीए तक शिक्षित होते हैं । ये पूछने पर कि शिक्षा प्राप्त करने लिए विध्यालय जाना क्या आवश्यक नहीं है । तो उन लोगों ने बताया कि शिक्षा के लिए केवल विध्यालय मे दाखिला कराना ही आवश्यक है । बाकी वजीफा से लेकर उत्तीर्ण होने का जिम्मा स्कूल प्रशासन का होता है । स्कूल का रिकार्ड खराब ना होइसलिए सुविधा शुल्क लेकर विध्यार्थियों को खुली छूट दी जाती है । इसतरह परीक्षा पास कर डिग्रिया लेकर देश के ये होनहार बेरोजगारी भत्ता पाते हैं एवं सुविधा शुल्क देकर नौकरियाँ प्राप्त करते हैं या दिहाड़ी मजदूर बन कर दिहाड़ी कमाते हैं या जुर्म की दुनिया मे प्रवेश करते हैं ।
जाति –भेद , वर्ग भेद , उंच नीचका भेदभाव , वैमनष्य ग्रामीण परिवेश मे हर परिवार की आर्थिक अवनति का कारण है । राजनीति मे इसकी जड़ें बहुत दूर तक स्थापित हो चुकी हैं । भारतीय संविधान हमें इसकी इजाजत नहीं देता है । संविधान मे सभी नागरिकों को समान अधिकार , एवं समान अवसर एवं समान शिक्षा का अधिकार दिया गया है । परंतु सामाजिक कुरीतियाँ हमारे संस्कारों , हमारे रीति रिवाजों मे समा चुकी है । संविधान के नियमों का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन हमारे सामाजिक परिवेश में कलंक के समान है । किन्तु यह स्टेटस सिंबल का प्रतीक बन चुका है । अपराधियों को सरंक्षणदेकर , राजनीतिक लाभ हेतु उनका इस्तेमाल, जाति भेद के अनुसार प्रचार –प्रसार मे उनका प्रयोग भारतीय समाज को आतंकित एवं कलंकित करता है । प्राचीन इतिहास के परिपेक्ष मे हम अपनी फूट ,भ्रस्ट आचरण एवं लोभ लालच से अपने शत्रुओ को प्रश्रय दे चुके हैं । यदि हम अतीत की घटनाओ से कुछ नहीं सीखे तो आने वाला भविष्य भारत वर्ष एवं भारतीय संविधान के लिए अहित कर साबित होगा ।
11 बजते –बजते दिहाड़ी मजदूर निराश होने लगते हैं और मायूष होकर जब घर लौटते हैं तो घरवाली पुछती है आज कोई खरीददार नहीं मिला । क्या खाओगे क्या खिलाओगे ?तब उनकी गरीबी देख कर कलेजा मुंह को आने लगता है । इंसान को इंसान खरीदता है । उसका भी मोलभाव तय होता है , तब उसके घर रोटी बनती है , बाल –बच्चो का पालन पोषण होता है , दिहाड़ी मजदूरो की यह अत्यंत कारुणिक कथा है । अंतर यह है कि दास प्रथा परतंत्र देश कि प्रथा थी यह आधुनिक आजाद देश कि प्रथा है जहां इंसान के लिए इंसान बिकता है । संविधान में समानता का अधिकार तब भी था आज भी है । ये अधिकार जानते सब हैं पर मानते कितने हैं ?

21 -09 -2017 डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
सीतापुर

Language: Hindi
3 Likes · 577 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
नेम प्रेम का कर ले बंधु
नेम प्रेम का कर ले बंधु
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
पृथ्वी की दरारें
पृथ्वी की दरारें
Santosh Shrivastava
ईमानदारी, दृढ़ इच्छाशक्ति
ईमानदारी, दृढ़ इच्छाशक्ति
Dr.Rashmi Mishra
ये इश्क़-विश्क़ के फेरे-
ये इश्क़-विश्क़ के फेरे-
Shreedhar
मैं इन्सान हूँ यही तो बस मेरा गुनाह है
मैं इन्सान हूँ यही तो बस मेरा गुनाह है
VINOD CHAUHAN
तुम पर क्या लिखूँ ...
तुम पर क्या लिखूँ ...
Harminder Kaur
"मकर संक्रान्ति"
Dr. Kishan tandon kranti
"मुझे हक सही से जताना नहीं आता
पूर्वार्थ
भीतर का तूफान
भीतर का तूफान
Sandeep Pande
अंधकार जो छंट गया
अंधकार जो छंट गया
Mahender Singh
बाबुल का घर तू छोड़ चली
बाबुल का घर तू छोड़ चली
gurudeenverma198
शायरी संग्रह नई पुरानी शायरियां विनीत सिंह शायर
शायरी संग्रह नई पुरानी शायरियां विनीत सिंह शायर
Vinit kumar
गणित का एक कठिन प्रश्न ये भी
गणित का एक कठिन प्रश्न ये भी
शेखर सिंह
स्टेटस अपडेट देखकर फोन धारक की वैचारिक, व्यवहारिक, मानसिक और
स्टेटस अपडेट देखकर फोन धारक की वैचारिक, व्यवहारिक, मानसिक और
विमला महरिया मौज
मैंने आईने में जब भी ख़ुद को निहारा है
मैंने आईने में जब भी ख़ुद को निहारा है
Bhupendra Rawat
प्यार नहीं दे पाऊँगा
प्यार नहीं दे पाऊँगा
Kaushal Kumar Pandey आस
आई दिवाली कोरोना में
आई दिवाली कोरोना में
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
मुहब्बत कुछ इस कदर, हमसे बातें करती है…
मुहब्बत कुछ इस कदर, हमसे बातें करती है…
Anand Kumar
खुदी में मगन हूँ, दिले-शाद हूँ मैं
खुदी में मगन हूँ, दिले-शाद हूँ मैं
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
हवाएं रुख में आ जाएं टीलो को गुमशुदा कर देती हैं
हवाएं रुख में आ जाएं टीलो को गुमशुदा कर देती हैं
कवि दीपक बवेजा
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
Mukesh Kumar Sonkar
गजल
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
*आत्मा की वास्तविक स्थिति*
*आत्मा की वास्तविक स्थिति*
Shashi kala vyas
दोहा त्रयी. . . सन्तान
दोहा त्रयी. . . सन्तान
sushil sarna
अमृत वचन
अमृत वचन
Dinesh Kumar Gangwar
(Y) #मेरे_विचार_से
(Y) #मेरे_विचार_से
*Author प्रणय प्रभात*
सम्भल कर चलना जिंदगी के सफर में....
सम्भल कर चलना जिंदगी के सफर में....
shabina. Naaz
स्त्री
स्त्री
Shweta Soni
3266.*पूर्णिका*
3266.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...