Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Oct 2017 · 3 min read

पीर पराई जानो रे

पीर पराई जानो रे ——
रामू की फसल बर्बाद रहो गयी है । राधे कृषक ने अत्महत्या कर ली है । मोहन की सदमे से मृत्यु हो गयी है क्योंकि उसे अपनी बर्बाद फसल को देखते नहीं बना । सबका परिवार अनाथ हो गया है । घर –घर क्रंदन –रुदन हो रहा है । सारा ग्राम शोक में डूबा है । चबूतरे पर बैठी बाबा की पथराई आंखे सुबह से शाम तक शून्य ही निहारा करती हैं । ये भगवान यह सब क्या होरहा है । रह रह कर बारिश की बूंदें बाबा की छाती पर अंगारे की तरह बरस रही हैं । ये कैसा अंधेर है । अपने अंतिम चरण में बारिश की आशंका लहलहाते खेतों
पर आफत बन कर टूट पड़ी है । अप्रैल माह में गेंहू की फसल में पानी भर गया , गेंहू की स्वर्णिम बालियाँ काली पड़ गयी हैं । कहीं स रसों की फसल धरा चूमने लगी । कहीं लाही चना की फसल नेस्तनाबूत होकर किसानों के सीने पर मूंग दलने लगी । ओलों ने रही सही कसर पूरी कर दी , आम्र बौरों से जो आशा की किरण चमकी थी , वह भी निस्तेज हो गयी । हाय विधि !कैसी मार है ?न कोई सरकारी सहायता न कोई सांत्वना । आखिर क्या होगा ?क्या कृषि एक अभिशाप बन कर टूटेगी ?क्या गुनाह है इन अन्नदाताओ का ? क्या ये गुनाह है कि अपनी फसल को इन कृषकों ने अपने रक्त व स्वेद कणों से सींचा है । क्या गरीबी अभिशाप है ?क्या अशिक्षा का क्लेश इन ग्रामीणो कि नियति है । शोक निराशा में डूबे हुए इनका आर्तनाद सुनने वाला कोई नहीं है । आशा , उत्साह की किरण दूर –दूर तक नजर नहीं आती है ।
सरकारी वादे केवल मृगतृष्णा साबित हो रहें हैं । कृषकों की मृत्यु की खबरें दिन –प्रतिदिन स्थिति की भयावहता का संकेत कर रही हैं । कोई आर्थिक , सामाजिक धार्मिक , भौतिक सहायता इन ग्रामीणो तक नहीं पहुँच रही है। न धार्मिक संस्थानो ने अपना मुंह खोला है , न सामाजिक संगठनो ने सहायता प्रदान की है । स्वास्थ्य से लेकर दवा तक , धन से लेकर अन्न तक सबका अभाव है । ग्रामीण अशिक्षित व असंगठित हैं गरीब हैं । अत :राजनेता उन्हे जाति , धर्म , गरीबी , क्षेत्रीय मुद्दो पर फुसला लेते हैं । जो ग्रामीण 65वर्षो से अभाव ग्रस्त था वो आज भी अभाव ग्रस्त है । उसे सुख का लेश मात्र भी अनुभव नहीं है । अन्नदाता अब भी मौन है , पहले भी मौन था जब तक स्वाभिमान नहीं जागेगा उसे मौन रह कर मर सहनी होगी । स्वाभिमान शिक्षित व संस्कारी होने से ही हो सकता है , जब उसे विवेक होगा कि क्या सही है क्या गलत है , क्या लाभ है क्या हानी है ?जब समग्र वह समग्र सोच रख कर जनहित मे अपने झूठे घमंड एवं मान मर्यादा का ढोंग न करके नि र्णय लेगा कि उसके ग्राम के लिए क्या उचित है क्या अनुचित है ?यहाँ राजतंत्र नहीं है कि केवल अक व्यक्ति विशेष अपना निर्णय थोप दे बल्कि प्रजातन्त्र मे हर व्यक्ति के विचार व सोच कि मान्यता होती है , और जिस प्रकार बूंद –बूंद से सागर भरता है उसी प्रकार एक –एक व्यक्ति की सोच राष्ट्र की सोच , राष्ट्रिय भावना का निर्माण करती है यही प्रजातन्त्र का मूल मंत्र है ।
समाज का दायित्व होता है कि संकट काल मेहर व्यक्ति वर्ग भेद , वैमनष्य , क्षेत्रवाद भूल कर अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को दरकिनार कर सामाजिक हित मे कंधा से कंधा मिलाकर पूर्ण सहयोगदे । व सरकार का मार्ग दर्शन करे क्योंकि सरकार कि मूल धारणा मे बीज के रूप मे आपका अस्तित्व है सरकार का भी दायित्व है कि उचित स्वस्थ वातावरण प्रदान करे व राजनीतिक प्रदूषण को रोके ।
आज कृषक समाज की समस्त समाज को आर्थिक सहायता करनी चाहिए । उन्हे सामाजिक संरक्षण देना चाहिए , उनके बाल –बच्चो के पालन –पोषण एवं शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए , नारी जाति का गौरव व सम्मान बनाए रखना चाहिए । मातृ शक्ति की ममता व स्नेह का मान रखना चाहिए । तभी स्वस्थ समाज एवं प्रजातन्त्र का अर्थ साकार हो सकेगा ।
18-04-15 डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव , सीतापुर

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 310 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
देती है सबक़ ऐसे
देती है सबक़ ऐसे
Dr fauzia Naseem shad
मैं लिखता हूँ जो सोचता हूँ !
मैं लिखता हूँ जो सोचता हूँ !
DrLakshman Jha Parimal
माशूक की दुआ
माशूक की दुआ
Shekhar Chandra Mitra
पूस की रात
पूस की रात
Atul "Krishn"
लघुकथा-
लघुकथा- "कैंसर" डॉ तबस्सुम जहां
Dr Tabassum Jahan
मुस्कुराओ तो सही
मुस्कुराओ तो सही
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
*तन्हाँ तन्हाँ  मन भटकता है*
*तन्हाँ तन्हाँ मन भटकता है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मैं तुमसे दुर नहीं हूँ जानम,
मैं तुमसे दुर नहीं हूँ जानम,
Dr. Man Mohan Krishna
इशारों इशारों में ही, मेरा दिल चुरा लेते हो
इशारों इशारों में ही, मेरा दिल चुरा लेते हो
Ram Krishan Rastogi
तुम हारिये ना हिम्मत
तुम हारिये ना हिम्मत
gurudeenverma198
बात सीधी थी
बात सीधी थी
Dheerja Sharma
ठोकरे इतनी खाई है हमने,
ठोकरे इतनी खाई है हमने,
कवि दीपक बवेजा
कहाॅ॑ है नूर
कहाॅ॑ है नूर
VINOD CHAUHAN
घर हो तो ऐसा
घर हो तो ऐसा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
सफ़र
सफ़र
Shyam Sundar Subramanian
प्रकृति का प्रकोप
प्रकृति का प्रकोप
Kanchan verma
!! नववर्ष नैवेद्यम !!
!! नववर्ष नैवेद्यम !!
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
जमाने को खुद पे
जमाने को खुद पे
A🇨🇭maanush
दिवाली मुबारक नई ग़ज़ल विनीत सिंह शायर
दिवाली मुबारक नई ग़ज़ल विनीत सिंह शायर
Vinit kumar
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
"बल और बुद्धि"
Dr. Kishan tandon kranti
ये आकांक्षाओं की श्रृंखला।
ये आकांक्षाओं की श्रृंखला।
Manisha Manjari
*बदन में आ रही फुर्ती है, अब साँसें महकती हैं (मुक्तक)*
*बदन में आ रही फुर्ती है, अब साँसें महकती हैं (मुक्तक)*
Ravi Prakash
*कमबख़्त इश्क़*
*कमबख़्त इश्क़*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
नमस्ते! रीति भारत की,
नमस्ते! रीति भारत की,
Neelam Sharma
कर्म से विश्वाश जन्म लेता है,
कर्म से विश्वाश जन्म लेता है,
Sanjay ' शून्य'
मां तेरा कर्ज ये तेरा बेटा कैसे चुकाएगा।
मां तेरा कर्ज ये तेरा बेटा कैसे चुकाएगा।
Rj Anand Prajapati
वीर वैभव श्रृंगार हिमालय🏔️☁️🌄🌥️
वीर वैभव श्रृंगार हिमालय🏔️☁️🌄🌥️
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दिल की दहलीज़ पर जब भी कदम पड़े तेरे।
दिल की दहलीज़ पर जब भी कदम पड़े तेरे।
Phool gufran
अनुभूति, चिन्तन तथा अभिव्यक्ति की त्रिवेणी ... “ हुई हैं चाँद से बातें हमारी “.
अनुभूति, चिन्तन तथा अभिव्यक्ति की त्रिवेणी ... “ हुई हैं चाँद से बातें हमारी “.
Dr Archana Gupta
Loading...