” तुमने फिर , डाला है डेरा ” !
बढ़ता हुआ कारवां ,
थम सा गया है !
रेत के टीलों से बाहर ,
मन यहाँ है !
छूटा घर –
द्वार देहरी ,
अब पराया है सवेरा !
झिलमिलाते दीप दो ,
रोशन हुए हैं !
हमराही राह चलते ,
थक से गये हैं !
ओट घूँघट –
खोलते पट ,
मुदित सा मन लगे तेरा !
रूप यौवन लादकर ,
आगे बढ़ी हो !
बदले हुए से अर्थ ,
पहचाने खड़ी हो !
डेरे डेरे –
दे के फेरे ,
थका सा समय लुटेरा !
बृज व्यास